हौले से आकर जगा देते हो मुझे
आज जो अभिशाप बन गये हो तुम
हौले से आकर कानों में कुछ कहते हो तुम
बुदबुदाते शब्द बनते जाते कहर!
उपर एक आसमां, क्या तलाशतें हो तुम
हौले से चैन छीन लेते हो तुम
झुठे ही सही ,तसल्ली दे जाते हो तुम !
तुम जो विश्वास थे, छल जो बन गये तुम
क्या करे अब परिभाषित, भुल जाओ तुम
प्रेम जो सच था उसे खो चुके तुम !
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ख्वाब में ही सही,उपस्थित दिखा देते हो तुम
तुम जो अरमान थे, तुम जो जीवन थे!
आज जो अभिशाप बन गये हो तुम
हौले से आकर कानों में कुछ कहते हो तुम
बुदबुदाते शब्द बनते जाते कहर!
उपर एक आसमां, क्या तलाशतें हो तुम
हौले से चैन छीन लेते हो तुम
झुठे ही सही ,तसल्ली दे जाते हो तुम !
तुम जो विश्वास थे, छल जो बन गये तुम
क्या करे अब परिभाषित, भुल जाओ तुम
प्रेम जो सच था उसे खो चुके तुम !
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vaakai sirf tum sach adbhut
ReplyDeletehttp/jyotishkishore.blogspot.com
अभिव्यक्ति अच्छी है लेकिन इसे तराशने की ज़रूरत है ।कुछ अनावश्यक शब्द निकालकर देखिये इसका रूप निखर जायेगा ।
ReplyDeleteShabd Chayan sunadar hai...Keep writing !!
ReplyDeleteबिना किसी लाग लपेट के की गई अभिव्यक्ति काफी सराहनीय है। अच्छा लगता है जब कोई दिल से लिखता है।
ReplyDeleteसीधी सादी और सच्ची रचना, सराहनीय प्रयास - शुभकामनाएं.
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