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Showing posts from October 28, 2009
आज फिर दिल रोया है बार-बार छलछलाते अश्क कह देते हर बात जख़्मी सांस, क्यो फरेब सहता है मन? क्या है रोक लेता है जो कदमों को  बार-बार किस तरह खेलते है लोग दिलों से कर देते है बस चकनाचुर आज फिर गमों का दौर आया है  हसरतों का टूटना ,बिखरना  मरना फिर जी लेना  ख़ुशियों क्यों छीन लेते है लोग क्यों नही समझ पाता कोई मन?    आज फिर दिल टुटा है यहां आवाज़ नही साज़ नही खामोशी ओर बस  घुटन....................              ---------