अन्धेरा धीरे धीरे पंख
पैसारने लगे
दिन भी
गुमसुम खोने लगे
आती है दूर से
कही एक आवाज
ठहरो अभी तो
शुरूवात हुई
फिर उजालों को
कह कर तो देखो
मै कही दूर न था
छिपा था तुम्हारें
आस-पास
तुमने कभी जाना
ही नही पहचाना ही नही
रात है तो सहर भी है
अन्धेरा अपना
असर तो दिखायेगा
न डरना इससे
कोई किरन ही
ढूंढ लेना जो
मंजिल तक पहुंचाये
वो सडक ढूंढ लेना------------------!
पैसारने लगे
दिन भी
गुमसुम खोने लगे
आती है दूर से
कही एक आवाज
ठहरो अभी तो
शुरूवात हुई
फिर उजालों को
कह कर तो देखो
मै कही दूर न था
छिपा था तुम्हारें
आस-पास
तुमने कभी जाना
ही नही पहचाना ही नही
रात है तो सहर भी है
अन्धेरा अपना
असर तो दिखायेगा
न डरना इससे
कोई किरन ही
ढूंढ लेना जो
मंजिल तक पहुंचाये
वो सडक ढूंढ लेना------------------!
Comments
Post a Comment