भटकते रहे होकर गुमराह
खोजते रहे मंजिलो की निसा
पर्वत, जंगल,नदिया ,झरने
वर्षा ,हवा इन पर सबका हक़ है
नहीं वजूद इनके बिना
चाहते सभी हक जमाना
पर उड़ते बदल तुम्हे छु
कर उड़ जाएँगे ...कभी हाथ न आयेंगे
बनाता रह तू महल
अपने ख्याबो के ...
तेरे ख्वाबो का तमाशा
पल भर में खाक हो जायेगा
यह नियति है इसका भरोसा न कर
करना है भरोसा तो नेक नियति पर कर
तीर्थ तेरे मन में है तेरे घर में है
तू अपनी धूनी यहाँ न जमा
उलझा उलझा अपने बनाये जाल में
अब क्या करनी से बच पायेगा ...
विनाश को बुला कर
अब क्या बचा पायेगा
जब वक्त था तब समझा ही नहीं
अब तो आदी, झूठ और मक्कारी का
क्या नया निर्माण कर पायेगा,..................!!!
खोजते रहे मंजिलो की निसा
पर्वत, जंगल,नदिया ,झरने
वर्षा ,हवा इन पर सबका हक़ है
नहीं वजूद इनके बिना
चाहते सभी हक जमाना
पर उड़ते बदल तुम्हे छु
कर उड़ जाएँगे ...कभी हाथ न आयेंगे
बनाता रह तू महल
अपने ख्याबो के ...
तेरे ख्वाबो का तमाशा
पल भर में खाक हो जायेगा
यह नियति है इसका भरोसा न कर
करना है भरोसा तो नेक नियति पर कर
तीर्थ तेरे मन में है तेरे घर में है
तू अपनी धूनी यहाँ न जमा
उलझा उलझा अपने बनाये जाल में
अब क्या करनी से बच पायेगा ...
विनाश को बुला कर
अब क्या बचा पायेगा
जब वक्त था तब समझा ही नहीं
अब तो आदी, झूठ और मक्कारी का
क्या नया निर्माण कर पायेगा,..................!!!
बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteसच कहा है ... जब भोग रहे थे तब नहीं सोचा ...
ReplyDeleteअब विनाश आने पे आंखें खुली हैं ..
इस विनाश से यह तो साबित हो ही गया जो लोग अहकार करते है ..सब कुछ स्थायी नही है मानवता ही काम आती है .
ReplyDeleteयह करे कोई भरे कोई , का जीता जागता उदाहरण है।
ReplyDeleteबेहद अफसोसजनक हालात हैं।